Startup Story: 'फुंसुक वांगड़ू' के स्टूडेंट ने किया कमाल, 1 लाख से खड़ा किया ₹80 लाख का बिजनेस, हिमालय के किसानों की कर रहा मदद
इस स्टार्टअप की शुरुआत जुलाई 2021 में हुई थी. इसे चार दोस्तों ने शुरू किया है. बॉटनी से ग्रेजुएशन और फॉरेंसिक साइंस में मास्टर्स कर चुके हिमांशु दुआ इस स्टार्टअप में ऑपरेशन्स देखते हैं. वह पिछले 5 सालों से हिमालन कम्युनिटी के साथ वातारण से जुड़े मामलों पर काम कर रहे हैं.
आपको 3 इडियट्स के फुंसुक वांगड़ू तो याद ही होंगे. जी हां, हम उसी किरदार की बात कर रहे हैं, जिसे आमिर खान ने निभाया था. यह किरदार सोनम वांगचुक की जिंदगी पर आधारित था. फिल्म में तो आपने देखा ही होगा कि कैसे फुंसुक वांगड़ू कई तरह के इनोवेटिव प्रोडक्ट बनाते हैं. उनसे हर कोई प्रभावित होता है और ये प्रभाव उनके स्टूडेंट्स पर भी खूब पड़ा. उनके ही एक स्टूडेंट हिमांशु दुआ ने उनसे प्रभावित होकर माय पहाड़ी दुकान (My Pahadi Dukaan) नाम का एक स्टार्टअप (Startup) शुरू किया है, जो हिमालय के किसानों की जिंदगी बेहतर कर रहा है. बता दें कि हिमांशु ने 2019-20 के दौरान सोनम वांगचुक के नेतृत्व में HILLs फेलोशिप की थी.
1 लाख रुपये से शुरू किया था बिजनेस
इस स्टार्टअप की शुरुआत जुलाई 2021 में हुई थी. इसे चार दोस्तों ने शुरू किया है. बॉटनी से ग्रेजुएशन और फॉरेंसिक साइंस में मास्टर्स कर चुके हिमांशु दुआ इस स्टार्टअप में ऑपरेशन्स देखते हैं. वह पिछले 5 सालों से हिमालन कम्युनिटी के साथ वातारण से जुड़े मामलों पर काम कर रहे हैं. मैकेनिकल इंजीनियरिंग कर चुके रोहन सहगल मार्केटिंग संभालते हैं. सीएफ फाइनिस्ट शुभम टंडन कंपनी के फाइनेंस मैनेज करते हैं. वहीं पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर और पैशन से माउंटेनियर मोहम्मद अनस जुबैर कंपनी का टेक देखते हैं. इस कंपनी की शुरुआत चारों दोस्तों ने मिलकर 25-25 हजार रुपये डालकर यानी कुल 1 लाख रुपये से की थी. इस साल कंपनी का टर्नओवर करीब 80 लाख रुपये रहने की उम्मीद है.
कैसे आया ये स्टार्टअप आइडिया?
माई पहाड़ी दुकान का आइडिया लद्दाख में एक फेलोशिप (2020-21) के दौरान आया, जिसका नाम था नरोपा (Naropa) फेलोशिप. इसी दौरान सारे को-फाउंडर्स एक दूसरे से मिलेगा. इस फेलोशिप में एक प्रोजेक्ट था, जिसके तहत हिमालयन कम्युनिटी के साथ मिलकर कुछ करना था. फेलोशिप के दौरान देखा कि देश के लोगों को पहाड़ी रीजन के प्रोडक्ट्स के बारे में बहुत ही कम पता है. वहीं जिन्हें पता है, वह ये नहीं जानते हैं कि मंगाएं कैसे. इतना ही नहीं, अगर किसी तरह प्रोडक्ट मंगवा भी लिए तो ये नहीं पता होता कि उस प्रोडक्ट की क्वालिटी कैसी होगी. इन सभी चीजों को ध्यान में रखते हुए माय पहाड़ी दुकान की शुरुआत की गई, ताकि लोगों को भरोसेमंद ब्रांड के साथ क्वालिटी पहाड़ी प्रोडक्ट मुहैया कराए जा सकें.
25 देशों तक पहुंच रहे क्वालिटी पहाड़ी प्रोडक्ट
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यह स्टार्टअप 150 से भी अधिक तरह के हिमालयन रीजन के प्रोडक्ट बेचता है. इनके प्रोडक्ट में लद्दाख का शिलाजीत भी शामिल है, जिसका हर बैच लैब टेस्ट से गुजरने के बाद ही ग्राहकों तक पहुंचता है. यह स्टार्टअप कश्मीर से लेकर नागालैंड तक के तमाम प्रोडक्ट्स को ना सिर्फ पूरे देश में पहुंचाता है, बल्कि विदेशों तक में इसका निर्यात किया जाता है. करीब 25 देशों में इस स्टार्टअप ने हिमालय के प्रोडक्ट पहुंचाए हैं. भूटान के साथ इस स्टार्टअप ने पार्टनरशिप की है, जिसके चलते भारत में भूटान के प्रोडक्ट बेचने के लिए माय पहाड़ी दुकान ऑफिशियल चैनल पार्टनर है. यह सब मुमकिन करने के पीछे कंपनी की सप्लाई चेन मैनेज करने वाली टीम का बड़ा योगदान है, जिन्हें 20 साल से भी ज्यादा का अनुभव है.
3000 से भी ज्यादा किसान जुड़े हैं
इस स्टार्टअप से को-ऑपरेटिव और सेल्फ हेल्प ग्रुप्स के जरिए हिमालय के 3000 से भी ज्यादा किसान जुड़े हुए हैं. माय पहाड़ी दुकान की वजह से उन सभी लोगों की जिंदगी बेहतर बन रही है और उनके प्रोडक्ट ना सिर्फ पूरे देश, बल्कि विदेशों तक पहुंच रहे हैं. किसानों के बेहतर बनाने के लिए यह स्टार्टअप उन्हें फ्री में कंसल्टेशन भी देता है कि कैसे वह अपने प्रोडक्ट की क्वालिटी मेंटेन कर सकते हैं या फिर कैसे पैकेजिंग कर सकते हैं.
वहीं मार्केटिंग में माय पहाड़ी दुकान का प्लेटफॉर्म किसानों की मदद करता है और उनके प्रोडक्ट को दुनिया के सामने लाता है. बता दें कि इस प्लेटफॉर्म पर ना सिर्फ छोटे बिजनेस के प्रोडक्ट लिस्टेड हैं, बल्कि कुछ प्रोडक्ट माय पहाड़ी दुकान के भी हैं. हिमांशु दुआ कहते हैं कि उनके 30-40 फीसदी ग्राहक बार-बार उनसे प्रोडक्ट खरीदते हैं.
फंडिंग और फ्यूचर
माय पहाड़ी दुकान को सबसे पहली फंडिंग रितेश अग्रवाल से मिली. रितेश ने इसे 5 लाख रुपये का ग्रांट दिया है. इसके अलावा डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी की तरफ से आईआईटी मंडी के जरिए 3 लाख रुपये का ग्रांट मिला है. एचडीएफसी परिवर्तन योजना ने इक्विटी आधारित 19 लाख रुपये की फंडिंग की है. वहीं पिछले साल आईआईएम काशीपुर से इस स्टार्टअप को 25 लाख रुपये का ग्रांट मिला हुआ है. बता दें कि आईआईएम काशीपुर की तरफ से एग्रीकल्चर मिनिस्ट्री के साथ मिलकर उभरते हुए एग्रीटेक स्टार्टअप्स को मदद मुहैया कराई जाती है.
भविष्य का क्या है प्लान?
यह स्टार्टअप भविष्य में ग्लोबल लेवल पर अपनी मौजूदगी बढ़ाना चाहता है. साथ ही अपने प्रोडक्ट पोर्टफोलियो को भी बढ़ाने की दिशा में ये स्टार्टअप काम कर रहा है. हिमांशु कहते हैं कि ऐसे बहुत सारे पहाड़ी प्रोडक्ट हैं, जिनके बारे में अभी तक लोगों को नहीं पता है. ऐसे में वह चाहते हैं कि उन सभी प्रोडक्ट को लोगों तक पहुंचाया जाए.
10:40 PM IST